जैसा की हमने पिछले लेखों में देखा , अस्तित्व का कोई रहस्यमय गुण स्व को जन्म देता है। अब हम अस्तित्व के और भी अधिक रहस्यमय गुण का अन्वेषण करेंगे , जो है अनुभवक्रिया। यह अस्तित्व में होने वाली कोई यादृच्छिक प्रक्रिया मात्र नहीं है, इसमें कुछ रोचक गुण है। अनुभवक्रिया अस्तित्व के ऊपर संस्कार (छाप) बनाती है और विभिन्न संरचनाओं के रूप में अपना आत्मसंगठन भी करती है [८]। यह ऐसा कहने के बराबर होगा कि अस्तित्व अपना ही आत्मसंगठन करता है। दुसरे शब्दों में, वह रचयिता है। इस तरह जो संरचनाएं उभरती हैं वे रचना है।
शनिवार, 31 दिसंबर 2016
अनुभव सृजन
जैसा की हमने पिछले लेखों में देखा , अस्तित्व का कोई रहस्यमय गुण स्व को जन्म देता है। अब हम अस्तित्व के और भी अधिक रहस्यमय गुण का अन्वेषण करेंगे , जो है अनुभवक्रिया। यह अस्तित्व में होने वाली कोई यादृच्छिक प्रक्रिया मात्र नहीं है, इसमें कुछ रोचक गुण है। अनुभवक्रिया अस्तित्व के ऊपर संस्कार (छाप) बनाती है और विभिन्न संरचनाओं के रूप में अपना आत्मसंगठन भी करती है [८]। यह ऐसा कहने के बराबर होगा कि अस्तित्व अपना ही आत्मसंगठन करता है। दुसरे शब्दों में, वह रचयिता है। इस तरह जो संरचनाएं उभरती हैं वे रचना है।
बीज शब्द:
आधारभूत प्रक्रिया,
चित्त,
मस्तिष्क,
रचना
बुधवार, 28 दिसंबर 2016
स्व का रहस्यमय जीवन
एंड्रॉयड जोन्स द्वारा |
यह आध्यात्मिक जीवन का रहस्य है: यह समझाना कि मैं आत्मा हूँ, शरीर नहीं हूँ, और यह संपूर्ण ब्रम्हांड अपनी सभी गतिविधियों, अच्छाईयों - बुराईओं के साथ केवल चित्रों की एक श्रृंखला है , जिसका मैं साक्षी मात्र हूँ।
- स्वामी विवेकानंद
पिछले लेख में हमने देखा कि अस्तित्व में होने वाली अनुभवक्रिया के परिणामतः स्व या स्वयं उभरता है। अनुभवक्रिया अस्तित्व में एक लय या नाद की तरह है, पानी पर लहरों के उतार चढ़ाव की तरह है। स्व भी इसकी एक लहर है, और कुछ नहीं, ज़रा सा बदला रूप है। सारांश में, स्व अस्तित्व ही है , बाकी सारी चीजों की तरह .... तथापि यह अस्तित्व का अत्यधिक शुद्ध रूप है , अन्य रूपों की तुलना में। यह कह सकते हैं कि यह अस्तित्व से बस एक ही कदम दूर है।
शनिवार, 24 दिसंबर 2016
अस्तित्व, अनुभव तथा ज्ञान
साल्वाडोर डाली द्वारा |
अनुभव रूपी अस्तित्व
एक बात बहुत निश्चित है - अस्तित्व है। वास्तव में केवल यही मेरे लिए निश्चित है। मुझे और कोई ज्ञान नहीं है , और कोई ऐसा अनुभव नहीं है जो इतना निश्चित लगता हो। बस कुछ है। उस "कुछ" को में अस्तित्व इस शब्द से परिभाषित करता हूँ। ये बस एक शब्द है जो उस निश्चितता का सूचक है। अस्तित्व एक प्रक्रिया द्वारा गतिमान हो रहा है , उसे मैं अनुभवक्रिया कहूंगा, और फिर अनुभव यह शब्द इस प्रक्रिया का संज्ञा रूप है। मैं कितना भी प्रयास करूँ , मैं इसका खंडन नहीं कर सकता , नकार नहीं सकता , और कोई भी ऎसा नहीं कर पायेगा। तो हम यहाँ एक बहुत दृढ़ आधार पर हैं। यह एक अच्छी शुरुआत है , शायद यहीं से कोई भी शुरुआत हो सकती है।
अस्तित्वनाद या अस्तित्व के परिवर्तन अनुभवक्रिया को जन्म देते हैं। बस इतना ही कुछ है , बाकि सब कुछ विवरण मात्र है। मुझसे मत पूछिये के ये अस्तित्व क्या चीज़ है, और उसमे ये नाद परिवर्तनादि हो क्यों रहा है , कैसे यह सब हो रहा है और क्यों ..... मुझे कोई ज्ञान नहीं इसका। महान ऋषि और पंडित इस बारे में क्या कहते हैं ये जानने के लिए तत्वविज्ञान की कोई अच्छी किताब पढ़ लें। मैं आपको आश्वासन देता हूँ की ये कोई नहीं जानता।
बीज शब्द:
अंतर्वस्तु,
अज्ञान,
अनुभव,
अनुभवक्रिया,
अबोधता,
अस्तित्व,
ज्ञान,
मान्यता,
स्वयं
गुरुवार, 22 दिसंबर 2016
हृदयपथ
गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुर्गुरुर्देवो महेश्वरः ।
गुरुरेव परं ब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥
कई वर्षों पहले मैं "हृद्ययुक्त पथ" इस शब्द से परिचित हुआ, कुछ किताबो द्वारा [१०]। सबकुछ समझ में नहीं आया , कुछ सर के ऊपर से भी गया, वह इतना गूढ़ प्रतीत हुआ। जो भी हो, वो शब्द मुझ पर छाप छोड़ गए, और बाद में यह स्पष्ट हुआ वो क्या कहते थे. वो ऐसा कुछ था जिसकी मुझे तलाश थी। मैंने इस संकल्पना को " हृदयपथ " इस रूप में फिर अपना लिया है [१]। यह रूप कुछ अधिक स्पष्ट है किन्तु कम पद्यात्मक है, और अब हम चर्चा करेंगे कि ये है क्या और क्यों इतना महत्वपूर्ण है।
यह मेरा अनुभव रहा है कि, अधिकांश व्यक्ति चिन्तनहीन जीवन व्यतीत करते हैं, अर्द्धसुप्त , अनभिज्ञ, लगभग अजीवित, प्रेतवत। उनका जीवन बाध्यताओं की एक श्रृंखला मात्र है [२], जो उनकी स्वयं की इच्छाओं, वासनाओं, भय, भावनाओं, सामाजिक दबाव, शारीरिक ज़रूरतों, पसंद, नापसंद, इत्यादि कई कारणों से अधिरोपित है। उनके जीवन का एक बड़ा हिस्सा अस्तित्व संबंधी गतिविधियों से बना होता है - भोजन, जनन, संबंध, सुरक्षा, समाजिक स्तरादि।
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