गुरुवार, 22 दिसंबर 2016

हृदयपथ

गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुर्गुरुर्देवो महेश्वरः ।
        गुरुरेव परं ब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥

कई वर्षों पहले मैं "हृद्ययुक्त पथ" इस शब्द से परिचित हुआ, कुछ किताबो द्वारा [१०]।  सबकुछ समझ में नहीं आया , कुछ सर के ऊपर से भी गया, वह इतना गूढ़ प्रतीत हुआ।  जो भी हो, वो शब्द मुझ पर छाप छोड़ गए, और बाद में यह स्पष्ट हुआ वो क्या कहते थे. वो ऐसा कुछ था जिसकी मुझे तलाश थी। मैंने इस संकल्पना को " हृदयपथ " इस रूप में फिर अपना लिया है [१]। यह रूप कुछ अधिक स्पष्ट है किन्तु कम पद्यात्मक  है, और अब हम चर्चा करेंगे कि ये है क्या और क्यों इतना महत्वपूर्ण है। 

यह मेरा अनुभव रहा है कि, अधिकांश व्यक्ति चिन्तनहीन जीवन व्यतीत करते हैं, अर्द्धसुप्त , अनभिज्ञ, लगभग अजीवित, प्रेतवत। उनका जीवन बाध्यताओं की एक श्रृंखला मात्र है [२], जो उनकी स्वयं की इच्छाओं, वासनाओं, भय, भावनाओं, सामाजिक दबाव, शारीरिक ज़रूरतों, पसंद, नापसंद, इत्यादि कई कारणों से अधिरोपित है। उनके जीवन का एक बड़ा हिस्सा अस्तित्व संबंधी गतिविधियों से बना होता है - भोजन, जनन, संबंध, सुरक्षा, समाजिक स्तरादि।



यानि, वे अपनी आधारभूत आवक्षकताओं को पूरा करने में व्यस्त हैं, अक्सर इनकी पर्याप्त पूर्ति होने के बाद भी। उनको कोई भी आभास नहीं कि वे क्या कर रहें हैं , क्यों कर रहें हैं , या क्या करना उचित है। बेचारे अपना जीवन यूँही बेखबर, बेड़ियों में बिता देतें हैं, और चले जाते हैं। बेशक, कई बहुत प्रसन्न भी लगते हैं, "सफल" होते हैं और कुछ महत्व पूर्ण वस्तुयें भी प्राप्त करते हैं, ज्यादातर द्रव्य पदार्थादि महत्व की। जो भी हो, अधिकांश नीरसता, हताशा, अनुसरिता, दुःख और पीड़ा भरा जीवन व्यतीत करते हैं , जिसमे कुछ छोटीमोटी क्षणिक प्रसन्नता और ज्ञान की झलकें मिल जाती हैं।  वे नियंत्रता व स्वतंत्रता के भ्रम में, विभिन्न आदतों से ग्रस्त, विश्वासों और अंधविश्वासों के जाल में जीते हैं, और ये भ्रम अक्सर "श्रेष्ठता" या "योग्यता" के वेष में होते हैं।  उनकी नैतिकता , सही-गलत की समझ और उत्कृष्टता आदि की मान्यताएं दूसरों से उधार में मिली होती हैं, भहुतांत्रिक तरीके से।  और कुछ दुर्लभ बिरले व्यक्ति , जो उन मानदंडों से विचलित होने की हिम्मत करते हैं, "हट के" या "पागल" कहलाते हैं।

अब आप सोच रहें होंगे कि मैं इन साधारण सामान्य लोगों की तरफ कुछ ज्यादा ही नकारात्मक हूँ, और शायद अहँकार और अभिमान से भरा हूँ। ये जीवन है, है ना ? उतार चढ़ाव, खुशी और दर्द आदि इसका एक हिस्सा हैं, आप कह सकते हैं, और सिर्फ इसलिए कि वे अपने सभी इच्छाओं और भयादि के साथ स्वाभाविक रूप से रहते हैं , उनको प्रेतवत या मूर्ख कहना अनुचित होगा।  खैर, मैं मानता हूँ, यह स्वाभाविक ही है, और इस तरह के लोगों को बेवकूफ निश्चित रूप से नहीं कह सकते , वास्तव में कई बहुत बुद्धिमान और चतुर हैं।  बेककूफ , अधमरे या अर्धसुप्त इन शब्दों की जगह मैं एक दूसरा शब्द प्रयोग करता हूँ, जो है - अज्ञानी। यह शब्द एक सटीक, निरापद और निष्पक्ष तरीके से उनकी हालत का वर्णन करता है। एक अज्ञानी वो व्यक्ति है, जिसमे कुछ आवश्यक ज्ञान का अभाव है, हालांकि, ऐसा व्यक्ति उस ज्ञान के लिए पूरी तरह से सक्षम है और उसे किसी भी समय हासिल कर सकता है। संक्षेप में, प्रतीकात्मक रूप में, ऐसे लोग अज्ञान के पथ पर हैं।

मैं स्वयं, अधिकांश उस पथ पर अपने जीवन काल में चला हूँ, और मुझे अभी तक शक़ है कि शायद मैं उस पथ पर कहीं खो गया हूँ या फिर हो सकता है किसी श्रेष्ठतर मोड़ से मुड़ गया हूँ।

जो भी हो, उपरोक्त वर्णन कुछ नकारात्मक दिखता है, इसलिए निष्पक्ष भाव से मैं अज्ञानी किस्म  के बारे में कुछ सकारात्मक भी कह देता हूँ। तो, मेरे अनुभव में, इस तरह के लोग अक्सर बहुत अच्छे स्वभाव के, विनम्र, सहायक, आज्ञाकारी, मेहनती, अपने कर्तव्यों और जिम्मेदारियों को समर्पित, सहानुभूति दिखने वाले, कानून-आज्ञा का पालन करने वाले, और अन्य मानवीय गुणों से युक्त भी होते हैं। हालांकि, कठिन परिस्थितियों में (जैसे अकाल या युद्ध) जब इस तरह के व्यक्ति की वास्तविक परीक्षा होती है, उनके उपरोक्त गुण लोप हो जाते हैं और हमें उनमे उनकी मूलवृत्ति या पाशविकता का दर्शन होता है। जैसे भी हो, ऐसे लोग शक्तिहीन होते हैं, अधिक नुकसान नहीं करते, क्योंकि वे बाहरी परिस्थितियों की दया पर होते हैं।  और ठीक इसी कारण से वे दूसरों का कुछ बहुत अच्छा भी नहीं कर सकते।

फिर ऐसे भी लोग हैं, जो अपनी आधारभूत आवक्षकताओं की पूर्ति होने पर एक जगह पर पहुँचते हैं जहाँ उनको एक विशाल शून्य , खालीपन, और अर्थहीनता मिलती है।  उनको किसी चीज़ की कमी का आभास होता है। ज्ञानाभाव में वे संघर्ष करते हैं और उस कमी को उन्ही सांसारिक वस्तुओं में खोजने का प्रयत्न करते हैं, यद्यपि अत्यधिकता से। ऐसे लोग अत्यधिक महत्वाकांक्षी होते हैं, उदाहरणार्थ, उद्यमी, राजनेता, राजा, "सफलता" की सीढ़ी पर उच्च, हमेशा चूहादौड़ में आगे रहने वाले होते हैं।  वे उप्लब्धिप्राप्त और जनता के प्रेरणास्रोत होते हैं।  धनी एवं संपन्न , आकर्षक, व शक्तिशाली होते हैं।  वे एक असाधारण जीवन जीते हैं, वस्तुओं , संबंधों और सांसारिक गतिविधियों के माध्यम से अपने आंतरिक शून्य को भरने का प्रयास करते हुए।

अब तक आपने मान लिया होगा कि ऐसे लोग अंततः सही पथ पर हैं , अन्यथा मैं क्यों उनकी स्तुति गा रहा हूँगा ? ऐसा जीवन बिल्कुल आदर्श जीवन , आपके सपनों का जीवन दिखता है।  ठीक ?, नहीं ... वहाँ एक नकारात्मक पहलू है। भीतरी शून्य बाहरी साधनों से नहीं भरा जा सकता, वो इसलिए नहीं है क्योंकि कुछ भौतिक या सामाजिक कमी है। शून्य हमेशा के लिए रहता है, वे संघर्ष करते रहते हैं और संघर्ष से यह नहीं भर सकता। उनके लिए कुछ भी कभी भी पर्याप्त नहीं होता, कभी संतोषजनक या तृप्तिदायक नहीं होता। उनका जीवन सतही होता है, अंदर दुःख से भरा होता है, बहार दिखावे से , वे अभी भी अनभिज्ञ हैं। हालांकि, वे कगार पर हैं। यह पीड़ा अक्सर सही रास्ते पर उन्हें धक्का देने के लिए पर्याप्त होती है। बोध देर से, अक्सर बहुत देर बाद होता है, सारा जीवन अधिक से अधिक जमा करने में बीत जाता है, वे "सफल" होने में व्यस्त रहते हैं।

उनका एक बड़ा डर है, सब कुछ खोने का डर , वे हमेशा दूसरों दया पर जीते हैं , और कौन उनको "सबसे श्रेठ" कहेगा, और कौन उनको बताएगा कि आपने सब पा लिया है, जो हम नहीं पा सकते।  एक धनी मरुस्थल में धनी नहीं रहेगा, उसको आसपास निर्धनों की आवश्यकता होती है, धनी कहलाने के लिये। एक राजा जंगल में राजा नहीं हो सकता, उसको दूसरों पर शासन करने , दूसरों का धन-धान्य लूटने की वृत्ति होती है। एक प्रसिद्ध व्यक्ति को प्रसिद्धि जीवित रखने के लिए दूसरों की जरूरत है। दूसरों पर निर्भरता, जो उनकी उपलब्धियों पर हावी रहती है, उनकी पीड़ा का स्रोत है। वे केवल दूसरों का उपयोग कर सकते हैं, वे उन्हें पा नहीं सकते, वस्तुओं की तरह, वे यह जानते हैं और इससे डरते है। वे अच्छे अवसरवादी होते हैं, दूसरों का लाभ लेने में प्रवीण होते हैं। ऐसे लोग बहुत लालची, हिंसक, अभिमानी और ईर्ष्याग्रस्त बन जाते हैं।

शक्तिशाली पदों पर होने के कारण, वे काफी नुकसान, नाश कर सकते है। उनमे ठीक इसी कारण अच्छा करने की भी योग्यता होती है, किंतु ऐसा शायद ही कभी देखा गया है, उनके मानवीय कृत्यों  पीछे हमेशा कुछ गुप्त उद्देश्य होते हैं।  वे अपने कर्मों को न्यायोचित करने के लिए झूठ का सहारा लेते हैं, पथभ्रष्ट करते हैं और कपट प्रयोग में लाते हैं। यह सब किसलिए? वे नहीं जानते।  उनकी मंद समझ में आता है कि वे यह नहीं करना चाहते, कुछ और ही चाहते हैं।  वे प्रेम, सादगी, स्वाभाविकता, मित्रतादि के लिए तड़पते हैं।  ये सुख उनकी मुट्ठी से रेत की तरह बह जाते हैं।

इस किस्म के सौम्य संस्करण भी हैं।  ऐसे लोग उस शून्य को अन्य तरीकों से भरने का प्रयास करते हैं, बाहरी तरीके, लेकिन बड़े पैमाने पर नहीं।  वे मादक द्रव्यों के सेवन या जुए जैसी नीच आदतों में पड़ जातें हैं या अधिकाधिक संबंध , कई विवाह बंधन , संतानोपत्ति आदि के फेर में होते हैं। कुछ अधिक से अधिक खाते हैं और मोटापे व रोगो से ग्रस्त हो जाते हैं। कुछ ढेर सामान जमाते हैं, अधिक से अधिक पैसा कमाने, अधिक उपभोग, चमकदार महंगी चीजें लेने , अगणित भोग-विलासों में लगे होते हैं।  वे पाते हैं कि , इच्छित वस्तुओं की प्राप्ति होने पर भी, आवश्कयता से कहीं अधिक मिलने पर भी , सुख अप्राप्य और क्षणभंगुर ही रहता है।  इच्छाएं और वासनाएं अंतहीन दिखती हैं, उनकी संतुष्टि क्षणिक या न के बराबर रहती है, वास्तव में वे दुःख का स्रोत्र बन जाती हैं। कुछ लोग उदास और आलसी हो जाते हैं, इस खालीपन का इलाज नहीं जानते। उनकी समझ में नहीं आता कि आवश्यकता से अधिक होने पर भी इतना दुःख क्यों है।


यह मेरा भी अनुभव रहा है। एक अच्छे जीवन के लिए जो करना होता है, वह करने पर भी, अच्छे जीवन हेतु वस्तुयें इकठ्ठा करने पर भी, और कई संबंधों और मित्रताओं से समृद्ध होने पर भी, कहीं शांति या आनन्द प्राप्ति नहीं हुई।  मैं इस पथ पर लंबे समय तक चलता रहा।  और शायद अभी भी यकीन से कहना संभव नहीं कि मैंने यह पथ त्याग दिया है।

अज्ञान की राह छोड़ने के लिए कोई बाध्यता नहीं है, कोई प्राकृतिक नियम या प्रतिबन्ध नहीं हैं।  इससे आतंकित होने की भी आवश्यकता नहीं है। कोई भी इस पथ पर सामान्यतया सारा जीवन चल सकता है।  किंतु इसके परिणाम होते हैं, फल होते हैं, जिनके विषय में हम शायद बाद में चर्चा करेंगे।  निश्चित रूप से, उनमे से एक फल दुःख है।  हाँ, ये तो एक समस्या है, अच्छी खबर  है कि , दुःख कई मामलों में परिहार्य है।  कभी-कभी केवल एक संकेत की ही आवश्यकता होती है और व्यक्ति जल्दी ही समझ सकता है कि वह एक गलत दिशा में जा रहा था। इसी प्रकार सही रास्ता खोजने के लिए संघर्ष शुरू होता है।

अब हम एक नई किस्म पर आते हैं।  इस किस्म के लोग दुर्लभ हैं, बहुत कम दिखाई देते हैं।  इन्होंने या तो उपरोक्त रास्तों के खतरों और खाईयों को जान लिया है या फिर उनमे गिर कर किसी तरह बचकर बहार आ चुके हैं।  इनको कोई बेहतर मार्ग मिल गया है।  ऐसे लोगों की एक निशानी होती है - स्वतंत्रता और मुक्त जीवन लिए उनका अपार प्रेम।  वे मुक्त रहना पसंद करते हैं , हर एक तरह की चीज़ से मुक्ति।  वे वास्तव में वो करते हैं जो उनका प्रिय कार्य है, किसी की नक़ल नहीं करते या फिर किसी के कहने से या आदेश पर नहीं करते। वे किसी भी तरह के बंधन में नहीं पड़ते, उनकी सबसे प्रिय चीज़ो के भी बंधन में नहीं।  उनमे  अहंकार, कोई भारीपन या उनके व्यक्तित्व में जड़ता नहीं होती।  वे परिवर्तन , प्रगति और उन्नति चाहते हैं , उससे डरते नहीं। साहसी और निडर होते हैं।  आदतों, मान्यताओं, मतारोपण, विभिन्न मतों से मुक्त होते हैं, उनसे कोई चीज़ बंधती नहीं, और वे किसी से बंधते नहीं।  कमल कीचड़ से पृथक होता है और उसकी बूँदें पंखुड़ियों पर टिकती नहीं।

उनकी विशेषता होती है - उनकी तीव्र जिज्ञासा , खुला दिमाग़ , संशयात्मकता और ज्ञान के लिए बड़ा प्रेम।  वे सीखने और सिखाने के लिए तत्पर रहते हैं।  हर चीज़ को सवालों घेरे में ले आते हैं , अंधविश्वासी नहीं होते, इनको मूर्ख बनाना आसान काम नहीं होता।  रचनात्मकता उनका स्वभाव है। ऐसे लोग कलाकार, वैज्ञानिक , लेखक , दार्शनिक और आध्यात्मिक साधक होते हैं [३]। वे अच्छी तरह समझते हैं कि सुख का सार मुक्ति है, इसलिए वे दूसरों को नियंत्रित करने के पक्ष में नहीं होते, न ही पदाधिकारादि के पीछे भागते हैं।  वे अपने आसपास सांसारिक वस्तुओं व संबंधियों की भीड़ जुटाने से बचते हैं।

इन लोगों को कुछ पता है - कुछ बहुत मूल्यवान बात। वे जानते हैं कि उन्हें अपने हृदय का अनुसरण करना है , दूसरों का नहीं।  वे अज्ञान और दुःख के मार्ग को अस्वीकार करके, सुख के पथ पर चलते हैं।  वे जानते हैं कि सुख का स्रोत्र आंतरिक है , और सुख उसमे है जो उनको प्रिय है।  वे भौतिकता , मित्रगण , संबंधी , समाज , मनोरंजनादि से आनंदित तो होते हैं, परंतु उनसे पूरी तरह विरक्त और अविचलित रहते हैं।  उनका हृदय उनको  हृदयपथ पर बारंबार खींच लाता है।

इन लोगों को खुशी की कुंजी पता है। वे इच्छा करते हैं, लेकिन जब उनको पूरा नहीं कर पाते तो उससे अप्रभावित रहते हैं।  वे बुनियादी जरूरतों के लिए चीजों को प्राप्त करते हैं, लेकिन जहां जरूरत समाप्त हो जाती है और लोभ शुरू होता है, वहां हमेशा एक मर्यादा की रेखा खींचते हैं। विलासिता का पूरा आनंद लेते हैं लेकिन उसके स्वामी या दास नहीं होते।  उनका प्रेम निस्वार्थ होता है, हर प्राणी , जीव और वस्तु के प्रति होता है, एक समान होता है, वो सिर्फ प्रेम देना जानते हैं, वसूलना नहीं।  उनके संबंध आसक्ति रहित, अनाधिकारित होते हैं, वे दाता होते हैं, भिक्षुक नहीं।  कभी अलोचना , बेकार तर्क - वितर्क नहीं करते।  और सभी परीस्थितियों में स्थिर व अड़िग रहते हैं।  सभी नियमों का पालन करते हैं, लेकिन उनसे बंधते नहीं , गुलाम नहीं होते।  यदि कोई जगह या स्थिति उनकी स्वतंत्रता कम करती है, तो वे वहां से तुरंत बहार का रास्ता लेते हैं, उसे झेलते नहीं।

ऐसे लोगों के सभी गुणों का यहाँ उल्लेख करना संभव नहीं, तो मैं उनको कभी किसी और लेख में लिखूंगा।  और कमियों के बारे में? उनमे कुछ दुर्गुण भी होते हैं ? इसका मुझे पता नहीं, लेकिन मैंने देखा है कि साधरण जन उनसे डरते हैं, नफरत करते हैं, उपहास करते हैं और उनको खतरनाक समझते हैं।  ये जन अज्ञानी हैं , उनको स्वतंत्रता से डर लगता है और उनसे भी जो स्वतंत्र हैं, इतने मुक्त हैं कि उनको नियंत्रित करना संभव नहीं।  ये आम जनता के उस भय का कारण है।  यह "सभ्य समाज" अपना अंधानुसरण न करने वालों के साथ क्या बर्ताव करता है, इस विषय पर एक पूरी किताब लिखी जा सकती है, लेकिन मुझे लगता है उसका कोई उपयोग नहीं होगा।

जैसा कि स्पष्ट है, ऊपर वर्णित प्रकार किसी भी कठोर परिभाषित श्रेणियों में नहीं आते।  यहाँ हर तरह के मिश्रण मिलेंगे, विविधता होगी।  सभी तरह की संभावनाएं होंगी।

तो मैं अब हृदयपथ को परिभाषित कर सकता हूँ , यह वो जीवनशैली है जो आपको शांति, सुख और संतुष्टि की ओर ले जाती है।  इस प्रकार का जीवन एक व्यक्ति को उपरोक्त गुणों से शोभित कर देता है [४]।

जीवन यह दिखावटी, साधारण, अनुशासित चीज़ नहीं है जिसको हम अपना अस्तित्व कहते हैं।  जीवन कुछ और ही है; यह पूरी तरह समृद्ध , हमेशा गतिमान है , और जब तक हम इसे समझ नहीं लेते , हमारा जीवन अर्थहीन रहने वाला है।
- जिद्दू कृष्णमूर्ति


एक स्पष्ट सवाल उठता है - हृदयपथ कैसे मिलेगा? क्या सभी के लिए एक ही पथ है? क्या इस पथ पर चलने लिए सभी को वैज्ञानिक / कलाकार / योगी (या जो कुछ भी हो) बनने की जरूरत है? एक नहीं तीन सवाल हो गए ... और मेरे अनुभवानुसार इनका कोई निश्चित उत्तर नहीं है।  ऐसा लगता है कि जब भी आप तैयार हों , पथ आपको पाता है।  आप पथ नहीं पाते।  जब आप कई सारे मार्ग चल लेते हैं और संतुष्ट नहीं होते, विचलित रहते हैं, आप अपनी स्थिति से परिचित होते हैं और उसका समाधान खोजने का अथक प्रयास करते हैं, तब जाकर हृदयपथ दिखाई देता है।  यह पथ सभी के लिए पूर्णतया एक जैसा नहीं है, लेकिन करीब-करीब समान है, शायद ही कभी अनोखा या अजीब होता होगा।  इस प्रकार के सभी पथों की विषयवस्तु लगभग समान होती है - स्वतंत्रता, मुक्ति, सुख या सत्य  खोज, ज्ञानादि।  अधिकतर यह सब स्वयं के बारे में ही होता है, स्वोन्नति के बारे में , और सिर्फ कुछ गिनीचुनी स्तिथियों में अन्यजनों के बारे में , यदि वह स्वयं के विकास में सहायक हो।  ध्यान रहे, यह पथ स्वार्थी नहीं, स्वयमून्नमुखी होता है।

तो क्या दूसरों की मदद करना , इस जगत का भला करना मेरा मार्ग नहीं है? हो सकता है, क्यों नहीं।  लेकिन मुझे शक़ है कि अगर आप स्वयं अज्ञानी और दुखी हैं तो आपको ऐसा करने में कोई ज्यादा सफलता मिलेगी। शुरुआत स्वयं से ही होती है।  तो यदि आपको संदेह है कि कोई जीवनशैली, कोई पथ आपके लिए सही है या नहीं, तो जाँच लें कि उसमे आपको स्वयं कोई लाभ हो रहा है या नहीं।  यदि आप दुखी हैं और दूसरों को भी दुःख ही पहुंचा रहे हैं, तो वो पथ आपका नहीं।

जो लोग सही मार्ग पा चुके हैं उनकी सहायता लेने की सलाह दी जाती है।  तथापि आप उनका अंधानुसरण नहीं कर सकते, वे उनके स्वयं के पथ पर हैं, आपके पथ पर नहीं।  ये शिक्षक या गुरु हैं, जिनकी पहचान उपरोक्त गुणों से की जा सकती है (किन्तु, ये कोई ठोस नियम नहीं हैं, आप गलत शिक्षक के फेर में पड़ सकते हैं, सावधानी रखें।) सिर्फ उनकी बातों या व्यवहार की नक़ल  से कुछ नहीं होगा।  वे क्या हैं, ये महत्वपूर्ण है, वे क्या बोलते हैं या करते हैं वो नहीं।  आपको उनका सार देखना पड़ेगा और उसको स्वयं में आत्मसात करना होगा।  जब आप एक शिक्षक से लाभांवित हो जाएँ तो उनको अपने मार्ग पर छोड़ दें।  वैसे भी, वे आपके साथ दीर्घकाल तक नहीं रुकने वाले।  वे केवल आपको कोई पथ दिखा सकते हैं, आपको उस पथ पर अपने सर पे बिठा कर नहीं ले जा सकते।  आपको अपने हृदयपथ पर चलना स्वयं सीखना होगा।

हर एक का एक अद्वितीय पथ होता है, यद्धपि उनमे समानताएँ होती हैं।  आप किसी और के पथ का अनुकरण नहीं कर सकते, वो उसका हृदयपथ होगा, आपका नहीं।  वो आपको कहीं नहीं ले जायेगा, शायद थोड़ा रोमांच मिले, किन्तु आप अंत में असंतुष्ट ही रहेंगे।  हृदयपथ किसी व्यवसाय, नौकरी, विश्वविद्यालय की उपाधि या किसी कौशल आदि से संबंधित नहीं है।  वह आपको इसलिए आकर्षित नहीं करता क्योंकि वो रुपये पैसे या प्रसिद्धि का स्त्रोत है, या क्योंकि आपके मित्रगण उसपर चल रहे हैं , बल्कि इसलिए क्योंकि आपको हृदय की गहराई से लगता है कि वो मेरा पथ है।  आपका पथ शायद ही दूसरों पर निर्भर होगा , यह केवल स्वयं पर निर्भर है। पथ के दर्शन होने में काफ़ी समय लग सकता है।  बचपन से ही हमारे कोमल स्वच्छ मन को विभिन्न मतों और पुरानी विचारधारओं से भर दिया जाता है , स्वयं का कुछ अंश ही बचता है।


एक और प्रश्न उठता है, आप कैसे जानेंगे कि आप अपने हृदयपथ पर हैं? ये आसान है, आपकी मनोशांति और सुख निरंतर बढ़ते जाते हैं।  दुःख होगा , किन्तु क्षणिक होगा।  जीवनचित्र पलट जायेगा, पृष्ठभूमि सुख की होगी, दुःख की गिनीचुनी कुछ लकीरें बचेंगी [५]।  आप पायेंगे कि उपरोक्त गुण अपनेआप मिल रहें हैं , बिना किसी विशेष प्रयास किये। ये गुण जोड़तोड़ द्वारा अथक प्रयास के बाद भी मिल सकते हैं, लेकिन वो अस्वाभाविक होते है , छोटीमोटी कठिनाई , परीक्षा की एक घड़ी , उनको मिटा देती है।  ये तो बस फल हैं जो पथ पर मिलने वाले वृक्ष देतें हैं , इनकी प्राप्ति आपका लक्ष्य नहीं है, लक्ष्य तो हृदयपथ पर चलते रहना है।

क्या यह पथ कभी समाप्त होता है? क्या उसके अंतिम पड़ाव पर कोई गड़ा धन मिलेगा? मेरी राय में (मेरे अनुभव में नहीं), यह कभी समाप्त नहीं होता, चलता जाता है।  संतुष्टि इस यात्रा में है, गंतव्य में नहीं। गंतव्य है ही नहीं।  यदि आप इसके विपरीत पाते हैं कि पथ का अंत आ गया है, और कोई बड़ी दिवार सामने है, आप उलझन में अटके हैं, क्या करें सूझता नहीं , तो जान लें कि वो आपका हृदयपथ नहीं था , कोई गलत रास्ता था।  कोई बात नहीं , होता है यह भी, थोड़ा विश्राम कर लें , फिर कोई नया मोड़ चुने।  कभी यूँ भी हो सकता है कि सच्चे हृदयपथ पर भी बाधा आ जाती है, किन्तु वो कुछ दिन ही ठहरती है और कोई अच्छी शिक्षा दे जाती है।  तो थोड़ा धैर्य चाहिए, पथ के बारे में कोई निष्कर्ष निकलने से पहले।  उसको स्वयं प्रकट होने दें।

क्या मुझे मेरा हृदयपथ मिल गया है? नहीं , उम्मीद कायम है।  मैं थोड़ीबहुत दिशा जानता हूँ और इस अँधेरी सुरंग के अंत में कुछ रौशनी की किरण दिखती है।  आशा है कि यह कोई रेल की सुरंग नहीं होगी।  मैं बस एक शिष्य मात्र हूँ , शिक्षक नहीं।

क्या इस विषय की मैंने खोज की है ? क्या मैं ख्याली पुलाव भर पका रहा हूँ ? जी नहीं।  ऐसे कई महामानव हुयें हैं जो लगभग यही शिक्षा दे गए हैं।  मैं तो बस वही दोहरा रहा हूँ।  श्रीकृष्ण एक अवधारणा सिखाते हैं - स्वधर्म की [६], जिसकी कई प्रकार से व्याख्या की गयी है , मैं इसे हृदयपथ ही समझता हूँ, आप चाहें तो कुछ और अर्थ चुन लें।  पश्चिमी दर्शन में अन्तस्तत्व की अवधारणा मिलती है [७] जो मैं "अंतिम आंतरिक लक्ष्य" के रूप में समझता हूँ, जो की हृदयपथ का ही सार है।  योगदर्शन मुक्ति या जीवनमुक्ति पर लक्षित है , और क्योंकि मुक्ति या स्वतंत्रता हृदयपथ का केंद्रबिंदु है, यह दर्शन यहाँ प्रस्तुत विचारों के सबसे करीब है [८]।  गौतम बुद्ध दुःख का अंत करने का लक्ष्य हमें देतें हैं , जो एक निश्चित मार्ग पर ले जाता है - अज्ञान का अंत , यही दुःखों का मूल कारण है। हृदयपथ भी हमें वहीँ ले जाता है।  मैं इन महान शिक्षाओं पर कोई टिप्पणी करने योग्य नहीं हूँ , तो उपयुक्त पुस्तकादि खोजें और पढ़ें [९]। यह विषय बहुत बड़ा और गहन है और इसे समझने में कुछ अच्छे शिक्षकों की सहायता लगेगी।  इनको सिर्फ पढ़कर कुछ भी नहीं मिलेगा , इसका फल व रहस्य इन शिक्षाओं को अपनाने में है, उनके पालन और अनुसरण में है।  आपको शीघ्र ही पता चलेगा कि ये सारे दर्शन और शिक्षण , कितने भी महान क्यों न हों , अंततः सीमित हैं , वो उनके अपने पथ पर प्राप्त अनुभव हैं।  आपको स्वयं के पथ पर - हृदयपथ पर चलना होगा, स्वयं के अपरोक्ष अनुभव लेने होंगे।




टिप्पणियाँ:

(सभी कड़ियाँ अंग्रेजी पृष्ठों की हैं )

[१] हृदयपथ यह शब्द "भक्ति के पथ" या भक्तियोग के अर्थ में नहीं उपयोग किया गया है।

[२] मैं इस शिक्षण के लिए सद्गुरु जग्गी वासुदेव का आभारी हूँ।

[३] ध्यान रखें कि सभी वैज्ञानिक विज्ञानी नहीं होते और सभी कलाकार कलाप्रवीण नहीं होते। बहुत से वैज्ञानिक सिर्फ विज्ञान के "व्यवसाय" में होते हैं, रोजी-रोटी कमाने के लिए और बहुत से कलाकारों में केवल कुशलता होती है , रचनात्मकता नहीं।  स्पष्ट है कि ऐसे लोग इस सूचि में नहीं आते।

[४] ध्यान दें कि "हृदय" यहाँ रूपक है, जैसे कि जैसे एक ज्वालामुखी का दीप्त केंद्र, इस शब्द का शारीरिक रक्तपम्प या मानसिक भावनाकेंद्र से यहाँ पर कोई संबंध नहीं है।  यह आपके अस्तित्व का केंद्र है जहाँ आप स्वयं को पाते हैं।

[५] दुःख या पीड़ा का अर्थ यहाँ मानसिक पीड़ा से है , शारीरिक दर्द से नहीं।  कोई भी पथ या जीवनशैली शारीरिक पीड़ा से मुक्ति का आश्वासन नहीं देते , यद्धपि इन पीड़ाओं से होने वाले दुःख को कम किया जा सकता है।

[६] उदाहरण स्वरुप , कुछ व्याख्याओं के लिए यह कड़ी देखें

[७] परिभाषा यहाँ से है 

प्रेरणा का एक प्रकार , आत्मज्ञान की इच्छा , और एक आंतरिक शक्ति जो जीवन और उन्नति को निर्देशित करती है, व्यक्ति को सक्षमता की सीमा तक ले जाती है; अपनी मान्यताओं का सत्य जानने की इच्छा ; स्वयं का लक्ष्य और उस लक्ष्य को साकार करने की क्षमता।  

अन्तस्तत्व (अंग्रेजी : Entelechy) हमारे आंतरिक क्रियाशील लक्ष्य का नाम है।  यह क्षमता का बीज है जो कि हमारे भीतर गहरे स्थित है, हमारे वास्तविक और अपेक्षित स्वरुप की छवि है। यूनानी दार्शनिक सुकरात ने यह शब्द सबसे पहले प्रयोग किया , और महान रहस्यवादी [पियरे] तिलहार्ड द`चार्डिन ने इसे प्रसिद्ध किया [....] अन्तस्तत्व आंतरिक लक्ष्य को नियंत्रित करती है , यही हमारी जीवनशक्ति है , जो हमें स्वयं की सम्पूर्ण अभिव्यक्ति करने हेतु सहायता करती है।

- लिसा तेनजिन-डोलमा,
मन और प्रेरणा: सफलता की आत्मा

[८] मैं बहुत स्पष्ट रूप से इन अवधारणाओं को समझाने के लिए सीफू रोहित आर्य का आभारी हूँ।

[९] उदाहरण स्वरुप: कड़ी - १ , कड़ी - २

[१०] यह उद्धरण मौलिक अंग्रेजी लेख के प्रथम पृष्ठ पर है।  संक्षिप्तता लिए टिप्पणी बना दिया गया है।

कोई भी बात हो वो एक लाख रास्तों में से एक का परिणाम है। इसलिए आपको हमेशा ध्यान में रखना चाहिए कि रास्ता केवल एक रास्ता है; यदि आपको लगता है कि इसका अनुसरण नहीं करना चाहिए, तो आपको किसी भी परिस्थिति में उसके साथ रहना नहीं रहना चाहिए। ऐसी स्पष्टता के लिए आपको एक अनुशासित जीवन व्यतीत करना चाहिए। उसके बाद ही आपको पता चलेगा कि कोई भी पथ केवल एक पथ है और इसे छोड़ने में अपने आप का या दूसरों का कोई अपमान नहीं है, यदि आपका हृदय यही कहता है तो।  लेकिन उस पथ को रखने या छोड़ने  निर्णय भय या महत्वाकांक्षा से मुक्त होना चाहिए। मैं आपको चेतावनी देता हुँ। बारीकी से और जानबूझ कर हर रास्ते को देखो।  कई बार प्रयास करो।

यह प्रश्न एक वृद्ध व्यक्ति ही पूछ सकता है।  क्या यह पथ हृदययुक्त है ? सभी पथ एकजैसे होते हैं : वे कहीं नहीं ले जाते।  वे या तो वन के पार जाते हैं या फिर वन के भीतर।  मेरे अपने जीवन में मैं कह सकता हूँ कि मैं लंबे रास्तों पर चल चुका हूँ, लेकिन मैं कहीं नहीं पंहुचा हूँ। क्या यह पथ हृदययुक्त है ? यदि है तो पथ अच्छा है, नहीं तो अनुपयोगी है।  दोनों पथ कहीं नहीं जाते ; लेकिन एक में हृदय है , दुसरे में नहीं।  पहला आनंदायक सफर है , जब तक आप इस पर हैं, आप और पथ एक हैं।  दूसरा जीवन को एक अभिशाप बना देगा।  पहला आपको शक्तिशाली बनाता है, दूसरा शक्तिहीन।

इससे पहले कि आप यात्रा पर निकले , प्रश्न करें : क्या यह पथ हृदययुक्त है ? यदि उत्तर ना है , आप जान जायेंगे , फिर आप दूसरा कोई पथ चुन सकते हैं।  समस्या ये है कि कोई भी ये प्रश्न नहीं पूछता ; और जब व्यक्ति अंततः समझ जाता है कि वो एक हृदयविहीन पथ पर है ; पथ उसको नष्ट कर देता है।  उस क्षण बहुत कम व्यक्ति रुक कर विचार कर पाते हैं या उस पथ को छोड़ पाते हैं।  एक हृदयविहीन पथ कभी आनंद नहीं देता।  इस पर कदम रखना भी एक कठिन कार्य है।  दूसरी ओर देखें तो , हृदययुक्त पथ आसान है ; इसको अपनाना कठिन नहीं।

- कार्लोस कैस्टानेडा , डॉन युआन की शिक्षा : एक याकी ज्ञानपथ


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