मंगलवार, 23 फ़रवरी 2021

बोधि वार्ता में आपका स्वागत है।

।। नमस्कार ।।

बहुत से साधकों की मुझसे मार्गदर्शन लेने की इच्छा जताई है। मुझे प्रसन्नता होगी यदि मैं आपकी किसी प्रकार सहायता कर सकूँ। सभी सेवाएं निशुल्क हैं और सदा निशुल्क रहेंगी। 

ज्ञानमार्ग की साधना कैसे आरम्भ करें ? आपके पास कई विकल्प हैं :

रविवार, 31 जनवरी 2021

ज्ञानमार्ग विकी परियोजना

अत्याधिक हर्ष के साथ मैं आपको सूचित करता हूँ कि ज्ञानमार्ग के लिए समर्पित एक विकी परियोजना प्रारम्भ की गयी है। 

https://oormi.in/pokhi

अभी यह अंग्रेजी, हिंदी और फारसी भाषाओं में उपलब्ध होगा। मैं सभी साधकों को इसे पढ़ने के लिए आमंत्रित करता हूं, और आशा करता हूँ कि आप इसमें अपने ज्ञान का योगदान यथासंभव करेंगे। 

आशा है कि इस परियोजना से सभी को लाभ होगा।

शनिवार, 23 जनवरी 2021

बोधि वार्ता पॉडकास्ट

बोधि वार्ता अब पॉडकास्ट के रूप में भी उपलब्ध है। 

यहाँ देखें : https://oormi.in/bodhi/


और मुझे ये बताते हुए अत्यंत हर्ष हो रहा है कि अब बोधि वार्ता के सहयोग से सभी साधक अपना स्वयं का पॉडकास्ट प्रकाशित कर सकते हैं , एकदम निशुल्क। 

गुरुवार, 22 अक्तूबर 2020

ज्ञानमार्ग की दीक्षा

ज्ञानमार्ग कार्यक्रम

नमस्ते,

दीक्षा का अर्थ है आरम्भ। निम्नलिखित कार्यक्रम उन साधकों के लिए है जो इस मार्ग पर आगे बढ़ने के लिए एक व्यवस्थित विधि चाहते हैं। इस कार्यक्रम पर चलने का सुझाव दिया जा रहा है। यह पूर्णतया निशुल्क है। इसकी कोई निश्चित समयावधि नहीं है , अपनी गति और योग्यता के अनुसार चलें। 

मैं केवल मार्गदर्शन कर सकता हूँ, कोई चमत्कार नहीं होंगे। आपकी प्रगति आप पर ही निर्भर है , वीडियो और सत्संग में केवल प्रचलित ज्ञान है , कुछ विशेष नहीं। 

कोई अनुष्ठान नहीं, कोई देवता नहीं, कोई पूजा नहीं, कोई आसन नहीं, किसी भी प्रकार की शक्ति से नहीं खेलना है, कोई विशेष आहार नहीं, कोई ब्रह्मचर्य नहीं, कहीं भी यात्रा करने की आवश्यकता नहीं। सिर्फ शुद्ध ज्ञान, प्रमाण सहित, कोई उपदेश नहीं - सत्य आपके सामने है।

ज्ञानमार्ग पर शास्त्रोक्त विधि है : श्रवण, मनन, निदिध्यासन। 

ज्ञान साधना के ये तीन भाग हैं । प्रवचनों को सुनकर, उनके  सत्य को देखने के लिए मनन करना और सत्य का पालन करना, वह सब छोड़ देना जो असत्य और अनावश्यक है। तो चलिए शुरू करते हैं। 

This program is also available in English.

सोमवार, 2 जनवरी 2017

चित्त एक अनोखा वरदान : भाग - १



अनुभवक्रिया में रत अस्तित्व आधारभूत प्रक्रिया से बंध जाता है जिसका परिणाम अनुभवों का आत्मसंगठन है, जिसे हम ज्ञान कहते हैं।  आधारभूत प्रक्रिया की यह गतिविधि विभिन्न रूपों में दिखती है, जैसे एक बहती नदी धरा को विभिन्न रूपों में तराशती है।  यदि हम इस आत्मसंगठन की गतिविधियों का एक जगह संकलन कर दें तो यह एक विराट वस्तु का रूप ले लेतीं है।  इससे हम पहले ही चित्त के नाम से परिचित हो चुके हैं।  यह स्वभक्षी है , अपने विस्तार के सीधे अनुपात में बढ़ता जाता है , और अधिक संगठन , संरचना , अर्थ और गतिविधि रचता जाता है।  यह आवश्यकताजनित है , क्योंकि कोई चीज़ ऐसा ना करे तो वह संरचनाओं के रूप में अनुभव नहीं की जा सकती , नश्वरता के प्रभाव से वो तुरंत विलीन हो जाती है।  यदि आप चकित हैं कि उपरोक्त का क्या अर्थ है , तो शायद आप कहीं बीच में पढ़ना शुरू कर रहें हैं , तो कृपया पिछले लेख पढ़ लें, इन वाक्यों का अर्थ समझने के लिए।

चित्त की यह आत्मनिर्भर महासंरचना सच में एक अनोखी और असाधारण चीज़ है।  मुझे लगता है कि अस्तित्व को इस पर बड़ा गर्व है , यह उसकी प्रिय संतान है।  यह प्रेम इतना गहरा है कि , स्व के रूप में अस्तित्व स्वयं को चित्त मान बैठता है।  बहुत अच्छा लगता है लेकिन तब तक , जब तक दुःख नहीं शुरू होता।  माँ-बेटे के इस प्रेम में ये दुःख बीच में कहाँ से आ गया? क्या चित्त में कोई बना बनाया दुःख को जनने वाला यन्त्र है? क्या आधारभूत प्रक्रिया ने इस त्रुटि को एक विशेषता कहकर छोड़ दिया है ;-)?

शनिवार, 31 दिसंबर 2016

अनुभव सृजन


जैसा की हमने पिछले लेखों में देखा , अस्तित्व का कोई रहस्यमय गुण स्व को जन्म देता है।  अब हम अस्तित्व के और भी अधिक रहस्यमय गुण का अन्वेषण करेंगे , जो है अनुभवक्रिया।  यह अस्तित्व में होने वाली कोई यादृच्छिक प्रक्रिया मात्र नहीं है, इसमें कुछ रोचक गुण है। अनुभवक्रिया अस्तित्व के ऊपर संस्कार (छाप) बनाती है और विभिन्न संरचनाओं के रूप में अपना आत्मसंगठन भी करती है [८]।  यह ऐसा कहने के बराबर होगा कि अस्तित्व अपना ही आत्मसंगठन करता है। दुसरे शब्दों में, वह रचयिता है।  इस तरह जो संरचनाएं उभरती हैं वे रचना है।